पंजाबी लघुकथा : आज तक
>> रविवार, 21 अक्तूबर 2012
पंजाबी लघुकथा
: आज तक(10)
'पंजाबी
लघुकथा : आज तक' के अन्तर्गत अब तक आप कथाकार भूपिंदर सिंह,
हमदर्दवीर नौशहरवी, (स्व.)दर्शन मितवा, (स्व.)शरन मक्कड, सुलक्खन मीत, श्याम सुन्दर अग्रवाल, डॉ.
श्यामसुन्दर दीप्ति, (स्व.) जगदीश अरमानी तथा हेमकरन खेमकरनी की चुनिंदा लघुकथाएं पढ़
चुके हैं। इसी की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं- धर्मपाल साहिल की पाँच पंजाबी लघुकथाओं का हिंदी अनुवाद।
साहिल जी ने लघुकथाओं के अतिरिक्त कहानियाँ और उपन्यास भी लिखे हैं लेकिन यह पंजाबी
लघुकथा के एक बहुचर्चित लेखक रहे हैं। इनके पांच उपन्यास हिंदी में भी प्रकाशित हो चुके हैं। इनकी
लघुकथाएं हमारे जीवन के बीच से ही उठाये गए विषयों पर तीखे कटाक्ष के साथ अपनी बात
कहती नज़र आती हैं और पाठक की संवेदना को झकझोरने की शक्ति रखती हैं। यहाँ प्रस्तुत
हैं इनकी पाँच चुनिंदा लघुकथाओं का हिंदी अनुवाद -
-सुभाष
नीरव
संपादक : कथा पंजाब
धर्मपाल साहिल
की पाँच लघुकथाएं
हिंदी अनुवाद
: सुभाष नीरव
खुलती हुई गांठे
रोज़ाना की तरह
मैं शाम के वक्त अपने एक्स-रे वाले मित्र की दुकान पर पहुँचा।
''मास्टर जी, ज़रा बैठो, मैं अभी आया। अगर कोई मरीज़ आए तो उसको
बिठा कर रखना।'' कहता हुआ वह तेज़ कदमों से बाहर चला गया।
मित्र के जाते ही मैं मरीज़ों वाले बैंच पर बैठने की बजाय मित्र की रिवॉल्विंग चेअर
पर बैठ गया। तभी एक खूबसूरत औरत वहाँ आई और मेरी ओर पर्ची बढ़ाते हुए बोली,
''डॉक्टर साहब, एक्स-रे करवाना है।''
''बैठो-बैठो, करते हैं।'' पर्ची पकड़ते हुए उस स्त्री के शब्द 'डॉक्टर साहब' मुझे फर्श से अर्श पर ले गए। डॉक्टर
बनने की मेरी तीव्र इच्छा तो पारिवारिक मज़बूरियों के नीचे दबकर रह गई थी और मुझे
मास्टरी करनी पड़ी थी। ''डॉक्टर साहब, देर
लगेगी क्या ?'' औरत की मीठी आवाज़ ने मेरी सोच की लड़ी तोड़ दी।
''अभी करते हैं एक्स-रे।
मैंने एक्स-रे फिल्म लेने के लिए भेजा था। बड़ी देर कर दी उसने।'' वैसे मैं चाहता था कि मेरा मित्र और देर से पहुँचे ताकि मेरा डॉक्टरी ओहदा
और देर तक सुरक्षित रह सके। मैंने पर्ची पर उड़ती-सी दृष्टि डाली, 'ए-पी बैकबोन।'
''तुम्हारी पीठ की हड्डी में
तकलीफ़ है ?''
''जी, डॉक्टर
साहब।''
''कहीं गिरे थे ?''
''नहीं, डॉक्टर साहब।''
''कोई वजनी चीज़ झटके से उठाई
होगी ?''
''घर का काम करते हुए
हल्की-भारी चीज़ तो उठानी ही पड़ती है, डॉक्टर साहब।''
औरत के मुँह से बार-बार 'डॉक्टर साहब' शब्द सुनकर मुझे नशा हो रहा था और मैं
अपनी औकात ही भूल बैठा था। उसी समय चार-पाँच आदमी दुकान पर पहुँचे। एक ने हाथ में
पकड़ी रसीद-बुक की पर्ची पर दुकान का नाम लिखते हुए कहा, ''डॉक्टर
साहब ! भंडारे के लिए दान दीजिए। कितने की पर्ची काटूँ ?''
मेरा मन हुआ कि कह दूँ,
मैं दुकान का मालिक नहीं। परन्तु अपनी ओर घूरती औरत को देखकर मैंने
जेब में से पाँच का नोट निकाल कर पीछा छुड़ाना चाहा।
''डॉक्टर साहब! कम से कम
इक्कीस रुपये का दान करो...।'' कहते हुए उसने इक्कीस रुपये
की पर्ची काटकर काउंटर पर रख दी। जेब में इक्कीस रुपये की जगह इक्कीस रुपये की
पर्ची रखते हुए मुझे लगा जैसे रिवॉल्विंग चेअर की गद्दी पर कांटे उग आए हों। उनके
जाते ही मैं कुर्सी से उठ खड़ा हुआ और बाहर झांकने लग पड़ा। मुझे मित्र के अब तक न
लौटने पर गुस्सा आ रहा था।
औरत से औरत तक
टेलिफोन पर
बड़ी बेटी शीतल के एक्सीडेंट की ख़बर जैसे ही सुनी, वासुदेव बाबू घबराये हुए-से संशय भरे मन से अपनी छोटी बेटी मधु को संग
लेकर तुरन्त समधी के घर पहुँचे। उन्हें गेट से भीतर प्रवेश करते देखकर रोने-पीटने
वालों की आवाज़ें और तेज़ हो उठीं। दामाद सुरेश ने आगे बढ़कर वासुदेव बाबू को संभालते
हुए भरे गले से बताया, ''बाज़ार से एक साथ लौटते हुए स्कूटर
का एक्सीडेंट हो गया। शीतल सिर के बल गिरी और बेहोश हो गई। फिर होश नहीं आया।
डॉक्टरों का कहना है, ब्रेन हेमरेज हो गया था।''
वासुदेव बाबू बरामदे में सफ़ेद
कपड़े में लिपटी अपनी बेटी की लाश को देखकर गश खाकर गिर पड़े। मधु ''दीदी उठो... देखो, पापा आए हैं... दीदी उठो...''
पुकार-पुकार कर रोने लगी। शीतल की सास मधु को अपनी छाती से लगाकर
सुबकते हुए बोली, ''बेटी, हौसला रख...
ईश्वर को यही मंजूर था।'' पीछे बैठी औरतों में से एक आवाज़ आई,
''सुरेश की माँ, रो लेने दो लड़की को, उबाल निकल जाएगा।''
लेकिन मधु जोर-जोर से रोये जा
रही थी और औरतों के 'वैण' आहिस्ता-आहिस्ता
धीमे पड़ते-पड़ते खुसुर-फुसुर में बदल रहे थे। एक अधिक आयु की औरत ने शीतल की सास का
कंधा हिलाया और कान के पास मुँह ले जाकर पूछा, ''अरी,
क्या यह सुरेश की छोटी साली है ?''
''हाँ, बहन।''
सुरेश की माँ ने दुखी स्वर में कहा।
''यह तो शीतल से भी अधिक
सुन्दर है। तुम्हें इधर-उधर जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। शीतल की बेटी की खातिर इतना
तो सोचेंगे ही सुरेश की ससुराल वाले।''
इतने में ही गुरो बोल उठी,
''छोड़ परे, बच्ची को हवाले करो उसके ननिहाल वालों
के। मैं लाऊँगी अपनी ननद का रिश्ता। खूब सुन्दर! और फिर घर भर जाएगा दहेज से।''
''हाय, नसीब
फूट गए मेरे बेटे के। बड़ी अच्छी थी मेरी बहू रानी। दो घड़ी भी नहीं रहता था उसके
बगैर मेरा सुरेश। हाय रे!'' सुरेश की माँ चीखने लगी तो पास
बैठी भागो ने उसे ढाढ़स देते हुए कहा, ''हौसला रख, सुरेश की माँ। भगवान का लाख-लाख शुक्र मना कि तेरा सुरेश बच गया। बहुएँ तो
और बहुत हैं, बेटा और कहाँ से लाती तूँ ?''
शीतल की लाश के पास बैठी मधु
पत्थर हो गई।
मुआवज़ा
वर्षा के कारण
गेहूं की फसल बर्बाद होने पर सरकार द्वारा मुआवज़ा वितरित किया जा रहा था। पटवारी
द्वारा बनाई गई लिस्ट के उम्मीदवारों की सरपंच तसदीक कर रहा था। तभी भीड़ को चीरते
हुए एक सत्तर वर्षीय फटेहाल बूढ़ी औरत लाठी के सहारे आगे बढ़ी। कुर्सियों पर
विराजमान एस.डी.एम. तथा तहसीलदार के सामने पहुँच कर वह प्रार्थना करने लगी, ''साहब, मेरा नाम भी मुआवज़े की लिस्ट
में चढ़ा लिया जाए। मैं जल्दी में इंतजाम न कर सकी, इसलिए
पटवारी ने मेरा नाम लिस्ट में नहीं चढ़ाया।''
''इंतज़ाम ! कैसा इंतज़ाम ?''
दोनों अफ़सर एक साथ बोल पड़े।
''साहब, गाँव का लंबरदार कह रहा था जो इंतजाम करेगा, उसी का
नाम लिस्ट में चढ़ाया जाएगा। और यह भी कह रहा था कि माई, इसका
हिस्सा तो ऊपर तक जाता है, इसीलिए मैं सीधे आपके पास ले आई।
कहीं पटवारी ही न पूरा का पूरा...।'' कहते-कहते बूढ़ी औरत ने
थैले में से कागज में लिपटी बोतल जैसी चीज़ मेज़ पर रख दी।
''साहब, अब तो मुझे भी मुआवज़ा मिल जाएगा न ?''
''साहब, यह बुढ़िया पागल है। इसकी बात का विश्वास न करें।'' कहते
हुए क्रोध से लाल-पीले होते हुए सरपंच और पटवारी बुढ़िया को खींचकर दूर ले जाने
लगे। बुढ़िया हाँफती हुई बोल रही थी, ''लोगो, मैं पागल नहीं हूँ। पिछली बार भी जब बाढ़ के कारण मकान गिरने से मेरा पति
दबकर मर गया था, तब भी मुझे मुआवजा नहीं मिला था क्योंकि मैं
इतंजाम...।'' बाकी के शब्द भीड़ के शोर में विलीन हो गए।
लक्ष्मी
जगमग करती
दीवाली की रात।
बच्चे पटाखे
चला रहे थे। पाँच वर्षीय पिंकी अपने बाबा की बगल में बैठी नज़ारा देख रही थी। पिंकी
ने अचानक प्रश्न किया, ''बाबा जी, दीवाली क्यों मनाते हैं ?''
''बेटी, दीवाली मनाने से घर में लक्ष्मी आती है।''
''फिर लक्ष्मी से क्या होता
है ?''
''बेटी जिस घर में लक्ष्मी आ
जाए, उस घर की किस्मत ही खुल जाती है। धन-दौलत की कमी नहीं
रहती।''
''बाबा जी, अगर हमारे घर लक्ष्मी आ गई तो आप मुझे सिम्मी की साइकिल जैसी साइकिल लेकर
दोगे न ?''
''हाँ-हाँ बेटा, क्यों नहीं। ज़रूर ले देंगे अपने बेटे को साइकिल। अच्छा, चल अब सो जाएँ। रात बहुत हो गई है।''
पिंकी बाबा के साथ करवटें ले
रही है। उसे नींद नहीं आ रही। उसे तो माँ के साथ सोने की आदत है न! पर उधर माँ साथ
के कमरे में प्रसव-पीड़ा से बेहाल है। तभी पिंकी की दादी घबराई हुई अन्दर आई और भरे
गले से कहने लगी, ''पिंकी के बाबा! हमारे घर फिर लक्ष्मी आई
है।''
''आहा जी ! हमारे घर लक्ष्मी
आ गई। आहा...जी। हमारे घर...'' सुनते ही पिंकी खुशी से झूम
उठी। पर दूसरे ही पल, बाबा का उतरा चेहरा देख पिंकी ने
हैरानी से पूछा, ''बाबा जी, हमारे घर
तो लक्ष्मी आई है, फिर आप उदास क्यो हो गए ?''
मंगता
पंडाल में
खाना ठंडा हो रहा था। नाचते हुए बारातियों की ताल मद्धम पड़ गई थी। खाना खाने के
लिए बारात और मीठी गालियों की बरसात करने के लिए प्रतीक्षा करती औरतों की आँखें
दुखने लगी थीं। पंडाल के एक ओर गुलाबी पगड़ी बाँधे नशे में धुत्त लड़के के बाप पर
सभी की निगाहें टिकी हुई थीं। उसके सामने लड़की का बाप कमान की तरह दोहरा होकर अपनी
पगड़ी उसके पैरों में रखता हुआ पंडाल में चलकर खाना खाने की विनती कर रहा था।
''बस, थोड़ी
मोहलत और दे दो। अब चलकर
रोटी खाएं, ठंडी हो रही है। आपको लौटने में दे हो जाएगी।''
''नहीं... हमारी शर्त अभी इसी
वक्त नहीं मानी गई तो हम जा रहे हैं।'' कहते हुए लड़के के बाप
ने पाँव गेट की ओर बढ़ाए।
बाहर काफी देर से एक फटेहाल
मंगता कुछ मिलने की आशा में बैठा था। उसने पास खड़े एक अपटडेट बाराती के आगे हाथ
फैलाया तो उस बाराती ने गेट की ओर जाते लड़के के बाप की ओर इशारा करते हुए कहा,
''उससे मांग, वह लड़के का बाप है।''
''बाबू जी, वह क्या देगा ? वह तो खुद ही मंगता है।'' मंगते के शब्द सुनते ही बाहर जाते लड़के के बाप के पैर एकाएक रुक गए।
00
जन्म : 9 अगस्त 1958
शिक्षा : एम. एस. सी., एम. एड.
प्रकाशित पुस्तकें : अक्क दे बीं(लघुकथा संग्रह), नींह दे पत्थर (कहानी
संग्रह), किन्नौर तों कारगिल (सफ़रनामा), धीयां मरजाणियां, पथराट (उपन्यास)- सभी
पंजाबी में। हिंदी में पाँच उपन्यास – समझौता एक्सप्रैस, बाइस्कोप, बेटी हूँ न, खिलने से पहले, ककून।
संप्रति : प्रिंसीपल, गवर्नमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल, नारू नांगल,
होशियारपुर (पंजाब)
पता : पंचवटी, एकता एन्कलेव, लेन नंबर- 2, पोस्ट ऑफिस- साधु आश्रम,
होशियारपुर (पंजाब)
ई मेल : dpsahil_panchvati@yahoo.com
फोन : 018882-228936(घर),
09876156964(मोबाइल)
4 टिप्पणियाँ:
bahut sundar ... asliyat bayan kar di nakali chehron ki ..badhaee.. lekhak ko ...or subhash ji ko ...acchi rachnayen anudit kar hame padhwane hetu ...vakaee kamal kiya .--shobha rastogi
achchhee laghu kathaayen padhwaane
ke liye aapkaa dhanyawaad subhash ji.
तीनो लघुकथाए बहुत ही बढिया है ....धन्यवाद् लिंक भेजने के लिए
शुभकामनाये
मंजुला
खुलती हुई गांठें और मंगता कथाएं मन को छू जाती हैं ...... Shukriya Subhashji
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