पंजाबी की नई कथा-पीढ़ी
: अपार सम्भावनाएँ
किसी भी भाषा के
साहित्य को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी नई पीढ़ी के लोगों पर टिकी होती है…पर प्रश्न
यह है कि नई पीढ़ी में कितने युवाओं को अपनी माँ-बोली और साहित्य से प्रेम है।
वैश्वीकरण और बाज़ारवाद के इस दौर ने सबसे अधिक युवा पीढ़ी का जो नुकसान किया है, वह
है – उसे उसकी अपनी भाषा, संस्कृति और साहित्य से दूर किया जाना…
रोजगार की अनिश्चिता से युवा पीढ़ी का हर नौजवान भयभीत है… उच्च शिक्षा प्राप्त
नौजवान भी अपनी जवानी और अपनी ऊर्जा पैकजों में खपा रहे हैं और दुख की बात यह है
कि रोजगार के स्थायीत्व का कोई भरोसा नहीं है। विश्वस्तर पर चलती मंदी के चलते कब,
किस समय उन पर गाज गिर जाए, कोई नहीं जानता। ऐसे अनिश्चित और भय भरपूर भविष्य वाले
समय में नौजवान पीढ़ी में से जब कुछ नौजवान अपनी तमाम चिंताओं, संघर्षों के बीच जब अपनी
भाषा और साहित्य में रूचि दिखलाते हैं तो
नि:संदेह एक सुखद अनुभूति का होना एक स्वाभाविक बात है… पंजाबी कहानी की एक मजबूत
विरासत रही है…अग्रज लेखकों ने पंजाबी कहानी को एक मजबूत आधार
दिया है… अनेक नाम हैं… यही मजबूत
विरासत नये लोगों को अपनी ओर खींचती रही है। पर नौजवान पीढ़ी के सामने अपने समय का
कटु यथार्थ होता है जिससे जूझता हर नया लेखक अपनी एक नई दृष्टि विकसित करता है और
जब वह लेखन में उतरता है तो विरासत में मिले खजाने से आगे जाने की ललक भी उसकी
आँखों में होती है। यह खुशी की बात है कि पंजाबी की नई कथा पीढ़ी के लेखक महज शौकिया
लेखन नहीं कर रहे हैं, वह लेखन के महत्व को गंभीरता से समझते हैं और अपने समय और
समाज की सच्चाइयों से जूझते हुए कुछ नया और हटकर सृजित करना चाहते हैं। जिंदर,
तलविंदर, सुखजीत, जतिंदर सिंह हांस, अजमेर सिद्धू, देसराज काली, जसवीर सिंह राणा,
बलजिंदर नसराली, वीना वर्मा, सुरिन्दर नीर, भगवंत रसूलपुरी, गुरमीत कड़ियालवी, बलदेव
सिंह धालीवाल, गुलजार मुहम्मद गौरिया, महिंदर सिंह कांग, केसरा राम, अनेमन सिंह,
कुलवंत गिल, बलविंदर सिंह बराड़ कुछ ऐसे ही नाम हैं जो अपनी रचनाशीलता से पंजाबी की
नई कहानी को एक नया मुकाम देने की कोशिश में संलग्न दीखते हैं।
हिंदी की प्रसिद्ध कथा पत्रिका ‘कथादेश’ का जब जुलाई 2000
में पंजाबी कहानी विशेषांक आया तो उसमें मेरी यह पूरी कोशिश रही थी कि यदि पंजाबी
कहानी का मुकम्मल चेहरा हिंदी पाठकों के सम्मुख रखना है तो पुरानी अग्रज पीढ़ी के
कथाकारों के साथ-साथ बिल्कुल नई पीढ़ी के कथाकारों की कहानियों को भी शामिल किया
जाए। तब देशराज काली, जिंदर, सुखजीत, भगवंत रसूलपुरी, बलदेव सिंह धालीवाल, अजमेर
सिद्धू, गुरमीत कड़ियालवी, तलविंदर सिंह, अवतार सिंह बिलिंग, बलजिन्दर नसराली, वीना
वर्मा की कहानियों को पाठकों ने बहुत पसन्द किया था। अभी हाल में ‘कथादेश’(मई 2012) का
भारतीय किसान समस्या पर एक अंक संपादित होकर आया है जिसका अतिथि संपादन सुभाष
चन्द्र कुशवाहा ने किया है। इस अंक में भी पंजाबी की नई कथा पीढ़ी के दो लेखकों – बलजिंदर नसराली
और बलविंदर सिंह बराड़ - की पंजाब के किसान
संकट पर लिखी गई दो कहानियों का हिंदी अनुवाद[‘अगर अपनी व्यथा
कहूँ’ और ‘सन्नाटा’] प्रकाशित हुआ है जो यह सिद्ध करता है कि पंजाबी की नई कथा-पीढ़ी
अपने समय और सरोकारों से जूझते हुए कितनी चैतन्य और जागरूक है।
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इस अंक में आप पढ़ेंगे –
-‘पंजाबी कहानी
: आज तक’ के अन्तर्गत पंजाबी के इसी प्रख्यात लेखक संतोख सिंह धीर की प्रसिद्ध कहानी ‘कोई एक सवार’
-‘पंजाबी कहानी : नये हस्ताक्षर’ के अन्तर्गत बलजिंदर नसराली की
कहानी ‘अगर अपनी व्यथा कहूँ’
-‘आत्मकथा/स्व-जीवनी’ के अन्तर्गत पंजाबी के वरिष्ठ लेखक प्रेम प्रकाश की
आत्मकथा ‘आत्ममाया’ को अगली किस्त, और
-बलबीर मोमी के उपन्यास ‘पीला गुलाब’ की अगली किस्त…
आप के सुझावों, आपकी प्रतिक्रियाओं की हमें प्रतीक्षा
रहेगी…
सुभाष नीरव
संपादक - कथा पंजाब
2 टिप्पणियाँ:
भाई नीरव,
पंजाबी साहित्य की नई पीढ़ी अपनी भाषा और साहित्य के प्रति जितना गंभीर है वह प्रशंसनीय है. मैं तुम्हारी बात से बिल्कुल सहमत हूं. लेकिन क्या कारण है कि हिन्दी का नया लेखक उसका दशांस भी गंभीर नहीं है. वह जोड़-जुगाड़ में लगा है. उसका साहित्य इतना अपठनीय है कि हिन्दी पाठक साहित्य से दूर होता जा रहा है. ऎसी स्थिति में पंजाबी के युवा लेखक हिन्दी के लिए एक नज़ीर बन सकते हैं. एक अच्छे संपादकीय के लिए बधाई.
रूपसिंह चन्देल
भाई नीरव जी
कथा पंजाब का ताला अंक मिला। आपकी मेहनत के लिए सदा प्रणाम करता रहा हूं।
आपका
एस आर हरनोट
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