संपादकीय
>> रविवार, 19 जून 2011
‘कथा पंजाब’ ब्लॉग को क्या कोई सार्थक हुंकारा मिल पाएगा ?
यह अंक विलम्ब से आ रहा है। नवम्बर 2010 के बाद। इस बीच ‘कथा पंजाब’ को मैंने वेब साइट का रूप देने की भरसक कोशिश की और सोचा कि वेबसाइट बनाकर ही अपने काम को आगे बढ़ाऊँ जो कि बहुत बड़ा है और दीर्घकालिक है। यह कार्य जहाँ खूब मेहनत मांगता है यानी श्रम की दरकार करता है, वहीं पूंजी की भी। सोचा था कि कुछ खास मित्र जुड़ेंगे और इस बड़े काम में अपना सहयोग देंगे लेकिन जैसा कि मैंने उम्मीद और अपेक्षा की थी, सच पूछें तो पंजाबी साहित्य और कला जगत के अपने मित्रों की उदासनीनता ने मुझे निराश ही किया। किसी का भी इस ओर कोई सार्थक हुंकारा मुझे नहीं मिला। परिणाम स्वरूप मुझे ‘कथा पंजाब’ को एक ब्लॉग के रूप में ही जारी रखने के लिए विवश होना पड़ा। इस बीच डॉ. सतिंदर सिंह नूर हमें अलविदा कह गए। वह नेट पर ब्लॉग के रूप में मेरे पंजाबी अनुवाद कर्म को लेकर बेहद खुश थे। वह अक्सर जब कभी भी मुझे मिलते, न केवल मेरी पीठ थपथपाते, मुझे प्रोत्साहित भी करते। लेकिन वह महान शख्सियत अब हमारे बीच नहीं हैं। उनका काम, उनका साहित्य और उनकी यादें ही हमारे पास शेष हैं। उनको मेरी और कथा पंजाब परिवार की ओर से विनम्र श्रद्धाजंलि!
इस अंक में आप पढेंगे - “पंजाबी कहानी : आज तक” स्तम्भ के अन्तर्गत पंजाबी के वरिष्ठ लेखक सुजान सिंह की प्रसिद्ध कहानी “कुल्फी”, ''पंजाबी लघुकथा : आज तक'' के अन्तर्गत (स्व.) जगदीश अरमानी जी की पाँच चुनिंदा लघुकथाएं और “पंजाबी कहानी : नये हस्ताक्षर” के अन्तर्गत जिंदर की पंजाब विभाजन के दर्द को लेकर लिखी एक सशक्त कहानी “ज़ख़्म” का हिंदी अनुवाद...
आप की प्रतिक्रियाओं की हमें प्रतीक्षा रहेगी…
सुभाष नीरव
संपादक - कथा पंजाब
6 टिप्पणियाँ:
SUBHASH JI ,AAJKAL SAHITYA KEE
SEWAA KARNA GHAR FOONKNE KE
SAMAAN HAI . KOEE SAHYOG NAHIN
DETAA . SHOCHNIY STHITI HAI.
सुभाषजी
सच है कि अगर आप कुछ सार्थक,दीर्घजीवी और याद रखने लायक कुछ करना चाहते हैं और बेशक इस चाहत में दूसरों के काम को ही आगे लाना हो तो भी आपको हमेशा अकेले ही चलना होता है।यही अच्छे काम की नियति होती है और यही पुरस्कार। पत्रिका चाहे प्रकाशित करें या नेट पर रखें, सारे काम और सारे खर्च खुद ही ढोने होते हैं। अब ये आप पर है कि कब तक.... मेरी शुभकामनाएं और आपकी हिम्मत के लिए मेरी ओर से बहादुरी का तमगा
सूरज
सुभाष जी,
ऐसा नहीं है कि अच्छे काम की तारीफ नहीं होती...पर समस्या ये है कि कोरी तारीफ से भी तो काम नहीं चलता न...मैं खुद पंजाबी से हिंदी अनुवाद का काम करती हूँ....पर आजतक जिसने भी काम देखा है यही कहा है...हमें भेज दो हम खुद छपवा लेंगे...अब इतनी मेहनत के बाद भी जब अपना काम किसी और के नाम करना पड़े तो दुःख तो होता है न...! इस लिए खुद को ज़ाहिर न करने में ही भलाई लगती है...! अगर कहीं छिट- पुट छप जाता है तो उतने में ही सब्र करना पड़ता है...अब आप इंग्लिश में देखिये...थोडा भी काम करो झट पैसे मिल जाते हैं...ऐसे में दूसरी भाषाओं को कौन पूछेगा???
प्रणाम !
सही है आप कि बाते मगर ये सच है कि किसी काम को शुरू करने में जितनी परेशानी आती है उसके बात उसकी सफलता सुकून भी पहुचाता है मगर उसे निरंतर निर्वहन करना और भी चुनौती भरा कार्य होता है जो हम पे ही निर्भर होता है कि उसे निभाया कैसे जाए जो सिर्फ और सिर्फ स्वयं पे ही निर्भर हो . बेशक क्षत्रिय भाषा ( कोई भी } इतनी हर किसी लेखक या पाठक के ज़हन पे हावी नहीं है जो आंगल भाषा है . वजह शायद हम स्वयं ही है भविष्य में कही ये स्थिती हिंदी कि ना हो जो चलन रोमन लिपि में चल रहा है . मगर ये भी है कि मात्र भाषा अपनी तो पानी ही होती है , कोई उससे दूर कब तक भागेगा .! सम्मानीय भाई साब आप का अपनी मात्र भषा के प्रति लागाव अवश्य रंग लाएगा . ये विश्वास है .
सादर !
आपका प्रयास सराहनीय है कृपया इसे जारी रखिये
सुभाष जी
नमस्कार,
आपके ब्लॉग को "सिटी जलालाबाद डाट ब्लॉगसपाट डाट काम" के "हिंदी ब्लॉग लिस्ट पेज" पर लिंक किया जा रहा है|
एक टिप्पणी भेजें