संपादकीय
>> रविवार, 17 जून 2012
पंजाबी की कथा-पत्रिकाएं
एक ज़माना था जब पंजाबी की कथा-केन्द्रित पत्रिकाएं जैसे ‘नागमणि’, ‘प्रीतलड़ी’, ‘लौ’ और ‘आरसी’ आदि मेरी प्रिय पत्रिकाएं हुआ करती थीं, जिन्हें मैं पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के सामने स्थित ‘दिल्ली पब्लिक लायब्रेरी’, शास्त्री भवन, नई दिल्ली के केन्द्रीय ग्रंथागार अथवा कभी-कभी रेलवे स्टेशनों के बुक-स्टालों से लेकर बड़े चाव से पढ़ा करता था। ‘प्रीतलड़ी’, ‘लौ’ और ‘आरसी’ में मेरी अपनी हिंदी कहानियों का पंजाबी अनुवाद भी छपा। इन पत्रिकाओं में ‘कहानी’ के अलावा अन्य रचनाएं भी छ्पती थीं जैसे कविता, लेख, समीक्षा आदि, पर मैं इन्हें कहानियों की वजह से ही पढ़ा करता था। बाद में ये पत्रिकाएं लुप्तप्राय: सी हो गईं या कह लो बिलकुल बन्द हो गईं। फिर आईं कुछ नई पत्रिकाएं। जैसे रामसरूप अणखी के ‘कहाणी पंजाब’, प्रेम प्रकाश के ‘लकीर’, रजनीश बहादुर सिंह की ‘प्रवचन’, हरजीत अटवाल/जिन्दर के ‘शबद’, भगवन्त रसूलपुरी के ‘कहाणी धारा’ आदि। इन पत्रिकाओं को मैं पढ़ता आ रहा हूँ क्योंकि ये मुख्यत: कथा प्रधान पत्रिकाएं हैं और मुझे पंजाबी की बिलकुल नई लिखी जा रही कहानी से अवगत कराती रहती हैं। पत्रिकाएं कुछ और भी हैं जैसे पंजाबी अकादमी, दिल्ली की पत्रिका ‘समदर्शी’, अवतार जंडियालवी की ‘हुण’, रघुबीर सिंह की ‘सिरजणा’ आदि जो पंजाबी साहित्य, विशेषकर कथा-साहित्य में अच्छा दख़ल रखती हैं। ये पत्रिकाएं भी यदा-कदा मित्रों की वजह से पढ़ने को मिल जाया करती हैं और इनमें भी मेरी प्रथम वरीयता कहानी पढ़ने की होती है। ‘हुण’ अब नेट पर भी उपलब्ध होने के कारण सहज प्राप्य है। कुछ वेबसाइट्स भी पंजाबी में आई हैं जिन पर पंजाबी कथा-साहित्य प्रमुखता से दिया जाता है जैसे ‘पंजाब कथा’। सिर्फ़ ‘समदर्शी’ को छोड़ दें तो बाकी की सभी उपर्युक्त पत्रिकाएं पंजाबी लेखकों/कवियों द्वारा अपने निजी प्रयत्नों/साधनों से अथवा कुछ एन.आर.आई लेखकों मित्रों के आर्थिक सहयोग से प्रकाशित की जा रही हैं। बेशक इन पत्रिकाओं के सीमित पाठक हैं लेकिन समकालीन पंजाबी कथा-साहित्य को जानना-समझना हो तो इन पत्रिकाओं का बहुत महत्व है।
ये पत्रिकाएं प्रिंट मीडिया की पत्रिकाएं हैं। लिहाजा इनकी पाठकों में पहुंच बहुत दूर तक नहीं होती। मुट्ठी भर आजीवन सदस्यों, वार्षिक सदस्यों, कुछ पुस्तकालयों और अधिकांश कम्प्लीमेंट्री कापी के रूप में साहित्यिक लोगों में वितरित होती हैं। इनके वितरण के लिए इन्हें भारतीय डाक व्यवस्था जो कि बहुत लचर और मंहगी है, पर आश्रित रहना पड़ता है। हिंदी में अनेक छोटी-बड़ी साहित्यिक पत्र- पत्रिकाएं अब प्रिंट के साथ-साथ नेट पर भी उपलब्ध हो रही हैं और इनकी संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। नेट पर होने से पत्रिकाओं का दायरा बहुत विस्तृत हो जाता है, वे भारत में ही नहीं, विदेशों में भी बड़ी सहजता से देखी-पढ़ी जाती हैं… पंजाबी में यह काम ‘हुण’ ने किया है। अन्य पंजाबी पत्रिकाओं को भी इस तरफ़ ध्यान देना चाहिए और इस नये युग की इस नई तकनीक का लाभ उठाना चाहिए… मकसद तो इन पत्रिकाओं का अधिक से अधिक लोगों तक अच्छे और श्रेष्ठ साहित्य को पहुंचाना ही है और नेट पर आने से नि:संदेह ये विश्वभर के पाठकों को सहज-सुलभ हो जाएंगी, ऐसा हमारा मानना है।
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इस अंक में आप पढ़ेंगे –
-‘आत्मकथा/स्व-जीवनी’ के अन्तर्गत पंजाबी के वरिष्ठ लेखक प्रेम प्रकाश की
आत्मकथा ‘आत्ममाया’ को अगली किस्त, और
आप के सुझावों, आपकी प्रतिक्रियाओं की हमें प्रतीक्षा
रहेगी…
-सुभाष नीरव
संपादक - कथा पंजाब
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