पंजाबी लघुकथा : आज तक
>> मंगलवार, 6 जुलाई 2010
पंजाबी लघुकथा : आज तक(6)
'पंजाबी लघुकथा : आज तक' के अन्तर्गत पंजाबी लघुकथा की अग्रज पीढ़ी के कथाकार भूपिंदर सिंह, हमदर्दवीर नौशहरवी, दर्शन मितवा, शरन मक्कड़ और सुलक्खन मीत की चुनिंदा लघुकथाएं आप पढ़ चुके हैं। इसी कड़ी में प्रस्तुत हैं- पंजाबी लघुकथा के अग्रणी, बहुचर्चित लेखक श्याम सुन्दर अग्रवाल (जन्म : 8 फरवरी, 1950) की पाँच चुनिंदा लघुकथाएं...। श्याम सुन्दर अग्रवाल जी जितना अपनी रचनाओं के लिए पंजाबी में मकबूल हैं, उससे कहीं अधिक हिंदी में जाने जाते हैं। पंजाबी लघुकथा को पूर्णत: समर्पित इस लेखक के पंजाबी में दो मौलिक लघुकथा संग्रह ''नंगे लोकां दा फिक्र'' और ''मारूथल दे वासी'' प्रकाशित हो चुके हैं। मौलिक लेखन के साथ-साथ यह अनुवाद कर्म से भी जुड़े हुए हैं। हिंदी कथाकार सुकेश साहनी के लघुकथा संग्रह - ''डरे हुए लोग'' और ''ठंडी रंजाई'', डा. सतीश दुबे के लघुकथा संग्रह ''आखिरी सच'' तथा कमल चोपड़ा के लघुकथा संग्रह ''सिर्फ़ इंसान'' का हिंदी से पंजाबी में अनुवाद कर चुके हैं। इसके अतिरिक्त पंजाबी में 23 एवं हिंदी में 2 लघुकथा संकलनों का संपादन भी किया है। गत 20 वर्षों से पंजाबी की त्रैमासिक पत्रिका ''मिन्नी'' का संपादन कर रहे हैं। मानवीय संवेदनाओं और रिश्तों पर अनूठी लघुकथाएं लिखने वाले इस लेखक ने अपने समय और समाज से जुड़े लगभग हर विषय को अपनी लघुकथा का विषय बनाया है।
सुभाष नीरव
संपादक : कथा पंजाब
श्याम सुन्दर अग्रवाल की पाँच लघुकथाएं
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
(1) वापसी
पत्नी के तिरिया हठ के आगे मेरी एक न चली। अपने खोये हुए सोने के झुमके के बारे में जानकारी लेने मुझे डेरे वाले बाबाजी के पास जाने को उसने बाध्य कर दिया।
पत्नी का झुमका जो पिछले सप्ताह छोटे भाई की शादी में कहीं खो गया था, बहुत तलाश करने पर भी नहीं मिला। रास्ते भर पत्नी बाबाजी की दिव्य-दृष्टि का बखान करती रही, ''पड़ोसवाली पाशो का कंगन अपने मायके में खो गया था। बाबाजी ने झट बता दिया कि कंगन पाशो की भाभी के संदूक में पड़ा है। पाशो ने मायके जाकर भाभी का संदूक खोला तो कंगन वहीं से मिला। जानते हो, पाशो का मायका यहाँ से दस-बारह मील पर है।''
मैं पत्नी को बताना चाह रहा था कि ऐसी बातें बहुत बढ़ा-चढ़ाकर कही गई होती हैं, लेकिन मेरे कहने का पत्नी पर कोई प्रभाव नहीं पड़नेवाला था, अत: मैं चुप ही रहा। पत्नी फिर बोली, ''और अपने गब्दू की लड़की रेशमा ससुराल जाते समय रास्ते में अपनी सोने की अंगूठी खो बैठी। बाबाजी ने आँखें मूंदकर देखा और बोल दिया, नहर के परली ओर नीम के पेड़ के नीचे घास में पड़ी है अंगूठी। और अंगूठी वहीं घास में पड़ी मिली।''
पत्नी ने ऐसे कितने उदाहरण दिए, यह तो मुझे याद नहीं। हाँ, ये किस्से सुनते-सुनते कब बाबाजी के डेरे पहुँच गए, पता ही नहीं चला।
बाबाजी अपने कमरे में ही थे। हमने कमरे में प्रवेश किया तो सारा सामान इधर-उधर बिखरा पड़ा पाया। बाबाजी और उनका शिष्य कुछ ढूँढ़ने में व्यस्त थे। मैंने पूछा, ''क्या बात हो गई ?''
''बाबा जी की सोने की चेन वाली घड़ी नहीं मिल रही। सुबह से उसे ही ढूँढ़ रहे हैं।'' शिष्य ने सहजभाव से उत्तर दिया।
डेरे से हमारी वापसी बहुत सुखद रही। पत्नी सारे रास्ते एक शब्द भी नहीं बोली।
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(2) अपना अपना दर्द
पचपन वर्षीय मिस्टर खन्ना अपनी पत्नी के साथ बैठे जनवरी की गुनगुनी धूप का आनंद ले रहे थे। छत पर पति-पत्नी दोनों अकेले थे, इसलिए मिसेज खन्ना ने अपनी टांगों को धूप लगाने के लिए साड़ी को घुटनों तक ऊपर उठा लिया।
मिस्टर खन्ना की निगाह पत्नी की गोरी-गोरी पिंडलियों पर पड़ी तो वह बोले, ''तुम्हारी पिंडलियों का मांस काफी नरम हो गया है। कितनी सुंदर हुआ करती थीं ये !''
''अब तो घुटनों में भी दर्द रहने लगा है, कुछ इलाज करवाओ न।'' मिसेज खन्ना ने अपने घुटनों को हाथ से दबाते हुए कहा।
''धूप में बैठकर तेल की मालिश किया करो, इससे तुम्हारी टांगें और सुंदर हो जाएँगी।'' पति ने निगाह कुछ और ऊपर उठाते हुए कहा, ''तुम्हारे पेट की चमड़ी कितनी ढिलक गई है।''
''अब तो पेट में गैस बनने लगी है। कई बार तो सीने में बहुत जलन होती है।'' पत्नी ने डकार लेते हुए कहा।
''खाने-पीने में कुछ परहेज़ रखा करो और थोड़ी बहुत कसरत किया करो। देखो न, तुम्हारा सीना कितना लटक गया है।''
पति की निगाह ऊपर उठती हुई पत्नी के चेहरे पर पहुँची, ''तुम्हारे चेहरे पर कितनी झुर्रियाँ पड़ गई हैं। आँखों के नीचे काले धब्बे बन गए हैं।''
''हाँ जी, अब तो मेरी नज़र भी बहुत कमजोर हो गई है, पर तुम्हें कोई फिक्र ही नहीं।'' पत्नी ने शिकायत भरे लहजे में कहा।
''अजी फिक्र क्यों नहीं। मेरी जान, मैं जल्दी ही किसी बड़े अस्पताल में ले जाकर तुम्हारी प्लास्टिक सर्जरी करवाऊँगा। फिर देखना, तुम कितनी सुंदर और जवान लगोगी।'' कहकर मिस्टर खन्ना ने पत्नी को बांहों में भर लिया।
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(3) मरूस्थल के वासी
गरीबों की एक बस्ती में लोगों को संबोधित करते हुए मंत्री जी ने कहा, ''इस साल देश में भयानक सूखा पड़ा है। देशवासियों को भूख से बचाने के लिए ज़रूरी है कि हम सप्ताह में कम से कम एक दिन उपवास रखें।''
मंत्री जी के सुझाव का लोगों ने तालियों से स्वागत किया।
''हम सब तो हफ्ते में दो दिन भी भूखे रहने के लिए तैयार हैं।'' भीड़ में सबसे आगे खड़े व्यक्ति ने कहा।
मंत्री जी उसकी बात सुनकर बहुत प्रभावित हुए और बोले, ''जिस देश में आप जैसे भक्त लोग हों, वह देश कभी भी भूखा नहीं मर सकता।''
मंत्री जी चलने लगे तो उन्हें लगा जैसे बस्ती के लोगों के चेहरे प्रश्नचिह्न बन गए हों।
उन्होंने बड़ी उत्सुकता के साथ पूछा, ''अगर आपको कोई शंका हो तो दूर कर लो।''
थोड़ी झिझक के पश्चात एक बुजुर्ग़ बोला, ''साब ! हमें बाकी पाँच दिन का राशन कहाँ से मिलेगा ?''
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(4) नंगे लोगों की फिक्र
एक देश में दो आतंकवादियों ने पहला क़त्ल मोटरसाइकिल पर सवार होकर किया। देश की सरकार ने मोटरसाइकिल पर दो आदमियों के एक साथ बैठने पर पाबंदी लगा दी।
दूसरी बार क़ातिल साइकिल पर चढ़कर ही भाग निकले। सरकार ने साइकिल चलाने पर भी पाबंदी लगा दी। लोगों ने अपनी साइकिल अँधेरे बन्द कमरों में छिपाकर रख दी।
जब तीसरा क़त्ल हुआ, क़ातिल हरी कमीज में थे। पुलिस ने शहर के चौक में खड़े होकर हरी कमीज़ वाले आदमी पकड़ने शुरू कर दिए।
चौथे क़त्ल के समय क़ातिलों ने सिर्फ़ निकर-बनियान ही पहने हुए थे। सरकार ने निकर-बनियार पहनने की गुंजाइश रखनेवालों पर पाबंदी लाग दी। अब पुलिस से बचने के लिए बनियान पहनने वाले लोगों ने बनियान पहनना ही छोड़ दिया।
क़ातिल अभी तक पकड़े नहीं जा सके थे। अब नंगे लोगों को चिंता सताने लगी है कि अगर आतंकवादियों ने अगली वारदात नंगे होकर कर दिखाई तो वे पुलिस की भयंकर मार से बचने के लिए वस्त्र कहाँ से लाएँगे !
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(5) संतू
प्रौढ़ उम्र का सीधा-सा संतू बेनाप बूट डाले पानी की बाल्टी उठा जब सीढ़ियाँ चढ़ने लगा तो मैंने उसे सचेत किया, ''ध्यान से चढ़ना ! सीढ़ियों में कई जगह से ईंटें निकली हुई हैं। गिर न पड़ना।''
''चिंता न करो जी ! मैं तो पचास किलो आटे की बोरी उठाकर सीढ़ियाँ चढ़ते हुए भी नहीं गिरता।''
और सचमुच बड़ी-बड़ी दस बाल्टियाँ पानी ढोते हुए संतू का पैर एक बार भी नहीं फिसला।
दो रुपये का नोट और चाय का कप संतू को थमाते हुए पत्नी ने कहा, ''तू रोज़ आकर पानी भर दिया कर।''
चाय की चुस्कियाँ लेते हुए संतू ने खुश होकर सोचा, ''रोज़ बीस रुपये बन जाते हैं पानी के। कहते हैं अभी नहर में महीना भर और पानी नहीं आने वाला। मौज हो गई अपनी तो।''
उसी दिन नहर में पानी आ गया और नल में भी।
अगले दिन सीढ़ियाँ चढ़कर जब संतू ने पानी के लिए बाल्टी मांगी तो पत्नी ने कहा, ''अब तो ज़रूरत नहीं। रात को ऊपर टूटी में पानी आ गया था।''
''नहर में पानी आ गया !'' संतू ने आह भरी और लौटने के लिए सीढ़ियों पर कदम घसीटने लगा। कुछ क्षण बाद ही किसी के सीढ़ियों में गिर पड़ने की आवाज़ हुई। मैंने दौड़कर देखा, संतू आँगन में औंधे मुँह पड़ा था।
'पंजाबी लघुकथा : आज तक' के अन्तर्गत पंजाबी लघुकथा की अग्रज पीढ़ी के कथाकार भूपिंदर सिंह, हमदर्दवीर नौशहरवी, दर्शन मितवा, शरन मक्कड़ और सुलक्खन मीत की चुनिंदा लघुकथाएं आप पढ़ चुके हैं। इसी कड़ी में प्रस्तुत हैं- पंजाबी लघुकथा के अग्रणी, बहुचर्चित लेखक श्याम सुन्दर अग्रवाल (जन्म : 8 फरवरी, 1950) की पाँच चुनिंदा लघुकथाएं...। श्याम सुन्दर अग्रवाल जी जितना अपनी रचनाओं के लिए पंजाबी में मकबूल हैं, उससे कहीं अधिक हिंदी में जाने जाते हैं। पंजाबी लघुकथा को पूर्णत: समर्पित इस लेखक के पंजाबी में दो मौलिक लघुकथा संग्रह ''नंगे लोकां दा फिक्र'' और ''मारूथल दे वासी'' प्रकाशित हो चुके हैं। मौलिक लेखन के साथ-साथ यह अनुवाद कर्म से भी जुड़े हुए हैं। हिंदी कथाकार सुकेश साहनी के लघुकथा संग्रह - ''डरे हुए लोग'' और ''ठंडी रंजाई'', डा. सतीश दुबे के लघुकथा संग्रह ''आखिरी सच'' तथा कमल चोपड़ा के लघुकथा संग्रह ''सिर्फ़ इंसान'' का हिंदी से पंजाबी में अनुवाद कर चुके हैं। इसके अतिरिक्त पंजाबी में 23 एवं हिंदी में 2 लघुकथा संकलनों का संपादन भी किया है। गत 20 वर्षों से पंजाबी की त्रैमासिक पत्रिका ''मिन्नी'' का संपादन कर रहे हैं। मानवीय संवेदनाओं और रिश्तों पर अनूठी लघुकथाएं लिखने वाले इस लेखक ने अपने समय और समाज से जुड़े लगभग हर विषय को अपनी लघुकथा का विषय बनाया है।
सुभाष नीरव
संपादक : कथा पंजाब
श्याम सुन्दर अग्रवाल की पाँच लघुकथाएं
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
(1) वापसी
पत्नी के तिरिया हठ के आगे मेरी एक न चली। अपने खोये हुए सोने के झुमके के बारे में जानकारी लेने मुझे डेरे वाले बाबाजी के पास जाने को उसने बाध्य कर दिया।
पत्नी का झुमका जो पिछले सप्ताह छोटे भाई की शादी में कहीं खो गया था, बहुत तलाश करने पर भी नहीं मिला। रास्ते भर पत्नी बाबाजी की दिव्य-दृष्टि का बखान करती रही, ''पड़ोसवाली पाशो का कंगन अपने मायके में खो गया था। बाबाजी ने झट बता दिया कि कंगन पाशो की भाभी के संदूक में पड़ा है। पाशो ने मायके जाकर भाभी का संदूक खोला तो कंगन वहीं से मिला। जानते हो, पाशो का मायका यहाँ से दस-बारह मील पर है।''
मैं पत्नी को बताना चाह रहा था कि ऐसी बातें बहुत बढ़ा-चढ़ाकर कही गई होती हैं, लेकिन मेरे कहने का पत्नी पर कोई प्रभाव नहीं पड़नेवाला था, अत: मैं चुप ही रहा। पत्नी फिर बोली, ''और अपने गब्दू की लड़की रेशमा ससुराल जाते समय रास्ते में अपनी सोने की अंगूठी खो बैठी। बाबाजी ने आँखें मूंदकर देखा और बोल दिया, नहर के परली ओर नीम के पेड़ के नीचे घास में पड़ी है अंगूठी। और अंगूठी वहीं घास में पड़ी मिली।''
पत्नी ने ऐसे कितने उदाहरण दिए, यह तो मुझे याद नहीं। हाँ, ये किस्से सुनते-सुनते कब बाबाजी के डेरे पहुँच गए, पता ही नहीं चला।
बाबाजी अपने कमरे में ही थे। हमने कमरे में प्रवेश किया तो सारा सामान इधर-उधर बिखरा पड़ा पाया। बाबाजी और उनका शिष्य कुछ ढूँढ़ने में व्यस्त थे। मैंने पूछा, ''क्या बात हो गई ?''
''बाबा जी की सोने की चेन वाली घड़ी नहीं मिल रही। सुबह से उसे ही ढूँढ़ रहे हैं।'' शिष्य ने सहजभाव से उत्तर दिया।
डेरे से हमारी वापसी बहुत सुखद रही। पत्नी सारे रास्ते एक शब्द भी नहीं बोली।
00
(2) अपना अपना दर्द
पचपन वर्षीय मिस्टर खन्ना अपनी पत्नी के साथ बैठे जनवरी की गुनगुनी धूप का आनंद ले रहे थे। छत पर पति-पत्नी दोनों अकेले थे, इसलिए मिसेज खन्ना ने अपनी टांगों को धूप लगाने के लिए साड़ी को घुटनों तक ऊपर उठा लिया।
मिस्टर खन्ना की निगाह पत्नी की गोरी-गोरी पिंडलियों पर पड़ी तो वह बोले, ''तुम्हारी पिंडलियों का मांस काफी नरम हो गया है। कितनी सुंदर हुआ करती थीं ये !''
''अब तो घुटनों में भी दर्द रहने लगा है, कुछ इलाज करवाओ न।'' मिसेज खन्ना ने अपने घुटनों को हाथ से दबाते हुए कहा।
''धूप में बैठकर तेल की मालिश किया करो, इससे तुम्हारी टांगें और सुंदर हो जाएँगी।'' पति ने निगाह कुछ और ऊपर उठाते हुए कहा, ''तुम्हारे पेट की चमड़ी कितनी ढिलक गई है।''
''अब तो पेट में गैस बनने लगी है। कई बार तो सीने में बहुत जलन होती है।'' पत्नी ने डकार लेते हुए कहा।
''खाने-पीने में कुछ परहेज़ रखा करो और थोड़ी बहुत कसरत किया करो। देखो न, तुम्हारा सीना कितना लटक गया है।''
पति की निगाह ऊपर उठती हुई पत्नी के चेहरे पर पहुँची, ''तुम्हारे चेहरे पर कितनी झुर्रियाँ पड़ गई हैं। आँखों के नीचे काले धब्बे बन गए हैं।''
''हाँ जी, अब तो मेरी नज़र भी बहुत कमजोर हो गई है, पर तुम्हें कोई फिक्र ही नहीं।'' पत्नी ने शिकायत भरे लहजे में कहा।
''अजी फिक्र क्यों नहीं। मेरी जान, मैं जल्दी ही किसी बड़े अस्पताल में ले जाकर तुम्हारी प्लास्टिक सर्जरी करवाऊँगा। फिर देखना, तुम कितनी सुंदर और जवान लगोगी।'' कहकर मिस्टर खन्ना ने पत्नी को बांहों में भर लिया।
00
(3) मरूस्थल के वासी
गरीबों की एक बस्ती में लोगों को संबोधित करते हुए मंत्री जी ने कहा, ''इस साल देश में भयानक सूखा पड़ा है। देशवासियों को भूख से बचाने के लिए ज़रूरी है कि हम सप्ताह में कम से कम एक दिन उपवास रखें।''
मंत्री जी के सुझाव का लोगों ने तालियों से स्वागत किया।
''हम सब तो हफ्ते में दो दिन भी भूखे रहने के लिए तैयार हैं।'' भीड़ में सबसे आगे खड़े व्यक्ति ने कहा।
मंत्री जी उसकी बात सुनकर बहुत प्रभावित हुए और बोले, ''जिस देश में आप जैसे भक्त लोग हों, वह देश कभी भी भूखा नहीं मर सकता।''
मंत्री जी चलने लगे तो उन्हें लगा जैसे बस्ती के लोगों के चेहरे प्रश्नचिह्न बन गए हों।
उन्होंने बड़ी उत्सुकता के साथ पूछा, ''अगर आपको कोई शंका हो तो दूर कर लो।''
थोड़ी झिझक के पश्चात एक बुजुर्ग़ बोला, ''साब ! हमें बाकी पाँच दिन का राशन कहाँ से मिलेगा ?''
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(4) नंगे लोगों की फिक्र
एक देश में दो आतंकवादियों ने पहला क़त्ल मोटरसाइकिल पर सवार होकर किया। देश की सरकार ने मोटरसाइकिल पर दो आदमियों के एक साथ बैठने पर पाबंदी लगा दी।
दूसरी बार क़ातिल साइकिल पर चढ़कर ही भाग निकले। सरकार ने साइकिल चलाने पर भी पाबंदी लगा दी। लोगों ने अपनी साइकिल अँधेरे बन्द कमरों में छिपाकर रख दी।
जब तीसरा क़त्ल हुआ, क़ातिल हरी कमीज में थे। पुलिस ने शहर के चौक में खड़े होकर हरी कमीज़ वाले आदमी पकड़ने शुरू कर दिए।
चौथे क़त्ल के समय क़ातिलों ने सिर्फ़ निकर-बनियान ही पहने हुए थे। सरकार ने निकर-बनियार पहनने की गुंजाइश रखनेवालों पर पाबंदी लाग दी। अब पुलिस से बचने के लिए बनियान पहनने वाले लोगों ने बनियान पहनना ही छोड़ दिया।
क़ातिल अभी तक पकड़े नहीं जा सके थे। अब नंगे लोगों को चिंता सताने लगी है कि अगर आतंकवादियों ने अगली वारदात नंगे होकर कर दिखाई तो वे पुलिस की भयंकर मार से बचने के लिए वस्त्र कहाँ से लाएँगे !
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(5) संतू
प्रौढ़ उम्र का सीधा-सा संतू बेनाप बूट डाले पानी की बाल्टी उठा जब सीढ़ियाँ चढ़ने लगा तो मैंने उसे सचेत किया, ''ध्यान से चढ़ना ! सीढ़ियों में कई जगह से ईंटें निकली हुई हैं। गिर न पड़ना।''
''चिंता न करो जी ! मैं तो पचास किलो आटे की बोरी उठाकर सीढ़ियाँ चढ़ते हुए भी नहीं गिरता।''
और सचमुच बड़ी-बड़ी दस बाल्टियाँ पानी ढोते हुए संतू का पैर एक बार भी नहीं फिसला।
दो रुपये का नोट और चाय का कप संतू को थमाते हुए पत्नी ने कहा, ''तू रोज़ आकर पानी भर दिया कर।''
चाय की चुस्कियाँ लेते हुए संतू ने खुश होकर सोचा, ''रोज़ बीस रुपये बन जाते हैं पानी के। कहते हैं अभी नहर में महीना भर और पानी नहीं आने वाला। मौज हो गई अपनी तो।''
उसी दिन नहर में पानी आ गया और नल में भी।
अगले दिन सीढ़ियाँ चढ़कर जब संतू ने पानी के लिए बाल्टी मांगी तो पत्नी ने कहा, ''अब तो ज़रूरत नहीं। रात को ऊपर टूटी में पानी आ गया था।''
''नहर में पानी आ गया !'' संतू ने आह भरी और लौटने के लिए सीढ़ियों पर कदम घसीटने लगा। कुछ क्षण बाद ही किसी के सीढ़ियों में गिर पड़ने की आवाज़ हुई। मैंने दौड़कर देखा, संतू आँगन में औंधे मुँह पड़ा था।
11 टिप्पणियाँ:
पाँचों लघु कथायें बहुतुअच्छी लगी। श्री श्याम सुन्दर अग्रवाल जी को बधाई। मेरा एक सुझाव है कि अगर रचना एक एक कर के छापी जाये तो पाठक अधिक आयेंगे। आजकल सभी के पास समय कम होता है अगर किसी रचना पर उचित प्रतिक्रिया भी न दे सकें तो भी लेखक को संतोष नही होता और पाठक भी ये सोच कर चला जाता है कि जब समय होगा तभी प्रतिक्रिया देगे। इसी लिये नेट की पत्रिकाओं पर कम पाठक आते हैं। जो कि सही रूप मे प्रतिक्रिया दे सकें। पत्रिका तो जब समय लगा पढ ली मगर ये पत्रिका केवल नेट पर ही पढी जा सकती है । जो ब्लागिन्ग भी करते हैं उन के लिये मुश्किल हो जाता है नेट पर इतनी देर बैठना। ये केवल मेरा सुझाव है। इसे अन्यथा न ले।
श्री श्याम सुन्दर अग्रवाल जी को बहुत बहुत शुभकामनायें
धन्यवाद्
Panchon laghu kathaayen padh gyaa
hoon.Sabhee ek se badh kar ek hain
lekin Santu kee durdashaa chinta-
janak prashn chhod jaataa hai.
कथा पंजाब में श्याम सुन्दर अग्रवाल जी की लघु कथाएं पढ़ कर आनंद आगया.नीरव जी का ऐसा सहज अनुवाद कि हिंदी और पंजाबी के वीच भाषा भेद ही मिट गया ये लघु कथाएं . संवेदना की ताज़गी के कारण अपनी पहचान को रेखांकित करने में सफल रही हैं. पाँचों लघु कथाएं ऐसी सटीक ,सार्थक और पारदर्शी .चरित्र के साथ प्रस्तुत हैं किबहुत कम लेखकों की हिंदी की लघु कथाएं इस स्तर पर मिलती हैं.एक बात अवश्य कहना चाहूँगा कि 'सन्तू के गिर जाने के बाद कुछ कहने के लिए नहीं रह गया था. .रचनाकार को बधाई और अनुवादक को धन्यवाद.'
मुझे "वापसी" और "मरूस्थल के वासी" लघुकथाएँ बहुत अच्छी लगीं ।
नीरव जी,
बहुत सराहनीय कोशिश है. मेरी तरफ से मुबारक स्वीकार करें
वर्तिका नंदा
nandavartika@gmail.com
श्याम सुन्दर अग्रवाल जी की पाँचों लघुकथाएं बहुत अच्छी हैं। 'मरुस्थल के वासी' के मर्म को मरुस्थल के वासी ही समझ सकते हैं, किसी नेता/मंत्री के वस की बात नहीं उनका शंका-समाधान कर पाना । अन्य लघुकथाओं में भी सटीक सामायिक चिंतन प्रभावित करता है।
भाई सुरेश यादव जी, आपने "संतू" लघुकथा के अन्त को लेकर बहुत सही कहा। लघुकथा वहीं समाप्त हो जाती है जब 'संतू' सीढ़ियों से लुढ़क कर आँगन में औंधे मुँह गिर पड़ता है। दर असल मैंने इस लघुकथा का तेरह -चौदह वर्ष पहले अनुवाद किया था और यह मेरे द्वारा संपादित पुस्तक "पंजाबी की चर्चित लघुकथाएं" में वर्ष 1997 में अपने पहले रूप में ही प्रकाशित हुई थी। लेकिन लेखक ने आज से दस-बारह वर्ष पहले ही इस लघुकथा में अन्त में आई फालतू की पंक्तियों को जान-समझ लिया था और उसे हटा भी दिया था। बहरहाल, कथा-पंजाब में इस लघुकथा को संशोधित कर दिया गया है। आपकी गहरी परख को सलाम !
भाई सुभाष,
सभी लघुकथाएं अच्छी हैं. तुम्हारे अनुवाद तो कहने ही क्या---पता ही नहीं चलता कि हम अनुवाद पढ़ रहे हैं. लेकिन एक बात अब खलने लगी है, जब आम आदमी तो आम आदमी लेखक भी औरत के बारे में आज भी ’तिरिया चरित’ शब्द का उपयोग करते हैं. होना चाहिए था कि लघुकथा में पत्नी की हठ के आगे---- पुरुष हठ क्या कम होता है....
चन्देल
Shri shyam agrawaal ji ki laghukatahyein ek sampoorn sandesh dene mein saksham rahi hai...
anuwaad karke hum tak pathan ke liye pahuchti hai iske liye subash Neerav ji aapka abhinandan!
sabhi laghu kathayein ek se badhkar ek hain, apne apne samay, apni-apni haqikat ko bayan karti hui.
पांचों लघुकथायें बहुत अच्छी लगीं।
आभार।
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