संपादकीय
>> गुरुवार, 11 मार्च 2010
लेखक कभी नहीं मरा करता...
यह अंक श्रद्धाजंलि स्वरूप (स्व.) राम सरूप अणखी और (स्व.) शरन मक्कड़ जी को समर्पित है। दोनों ही पंजाबी कथा साहित्य के बहुचर्चित और स्थापित लेखक रहे हैं। अणखी जी को उनकी कहानियों और उपन्यास के क्षेत्र में किए गए कार्य के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा। वह ऐसे लेखक थे जो निरन्तर लिखने में विश्वास करते थे। हर समय उनकी कलम चलती रहती थी। अनगिनत कहानियों के साथ-साथ उन्होंने पंजाबी साहित्य को अनेक उपन्यास दिए जिनमें ''परदा और रौशनी'', ''कोठे खड़क सिंह'', ''प्रतापी'' ''सुलघती रात'' ''जख्मी औरत'' ''जिन सिर सोहन पट्टियाँ'' प्रमुख हैं। ''कोठे खड़क सिंह'' उपन्यास पर साहित्य अकादमी, दिल्ली का पुरस्कार वर्ष 1987 में प्रदान हुआ था। यह उपन्यास हिंदी में ''एक गाँव की कहानी'' शीर्षक से प्रकाशित हुआ। 28 अगस्त 1932 में धौला,जिला-संगरूर(पंजाब) में जन्मे राम सरूप अणखी जी का निधन गत 14 फरवरी 2010 को उनके निवास बरनाला में हुआ। (स्व.)शरन मक्कड़ (मार्च, 1939- 10 नवम्बर, 2009) पंजाबी की बहुचर्चित लेखिका रही हैं। इन्होंने अनेक कहानियों और लघुकथाओं की रचना की। पंजाबी लघुकथा में इनके महत्वपूर्ण योगदान को भुला सकना असंभव है। शरन मक्कड़ जी ने अपनी मौलिक रचनात्मकता और सम्पादन कार्य के जरिये पंजाबी लघुकथा के विकास में बहुत बड़ा और उल्लेखनीय काम किया। उन्होंने अनवंत कौर के साथ मिलकर पंजाबी लघुकथा की एक बहुत ही महत्वपूर्ण पुस्तक ''अब जूझन के दाव'' सन् 1975 में सम्पादित की थी। यह वह दौर था जब पंजाबी लघुकथा में हमें उंगलियों पर गिने जाने वाले मौलिक और सम्पादित संग्रह दिखाई देते थे। लघुकथाओं के अलावा शरन जी ने पंजाबी में अनेक कहानियाँ लिखीं। 'न दिन, न रात', 'दूसरा हादसा', 'टहनी से टूटा हुआ मनुष्य', 'धुआं और धूल', 'कच्ची ईंटों का पुल' उनके प्रमुख कहानी संग्रह हैं। 'खुंडी धार' शीर्षक से उनका चर्चित लघुकथा- संग्रह है। इसके अतिरिक्त चार कविता संग्रह उन्होंने पंजाबी साहित्य की झोली में डाले।
भले ही उक्त लेखक अब हमारे बीच नहीं रहे हैं, पर लेखक कभी मरा नहीं करता। वह अपनी रचनाओं के जरिये हमारे बीच जिंदा रहता है और ये भी जिंदा रहेंगे हम सब के बीच, अपने लिखे हुए साहित्य के कारण्… ''कथा पंजाब'' इन दोनों लेखकों को भावभीनी श्रद्धाजंलि देता है।
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इस अंक में आप पढेंगे -
“रेखाचित्र/संस्मरण” स्तम्भ के अन्तर्गत राम सरूप अणखी पर पंजाबी कथाकार गुरमेल मडाहड़ द्वारा लिखा रेखाचित्र और ''पंजाबी लघुकथा : आज तक'' के अन्तर्गत शरन मक्कड़ जी की पाँच चुनिंदा लघुकथाओं का हिंदी अनुवाद...
यह अंक श्रद्धाजंलि स्वरूप (स्व.) राम सरूप अणखी और (स्व.) शरन मक्कड़ जी को समर्पित है। दोनों ही पंजाबी कथा साहित्य के बहुचर्चित और स्थापित लेखक रहे हैं। अणखी जी को उनकी कहानियों और उपन्यास के क्षेत्र में किए गए कार्य के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा। वह ऐसे लेखक थे जो निरन्तर लिखने में विश्वास करते थे। हर समय उनकी कलम चलती रहती थी। अनगिनत कहानियों के साथ-साथ उन्होंने पंजाबी साहित्य को अनेक उपन्यास दिए जिनमें ''परदा और रौशनी'', ''कोठे खड़क सिंह'', ''प्रतापी'' ''सुलघती रात'' ''जख्मी औरत'' ''जिन सिर सोहन पट्टियाँ'' प्रमुख हैं। ''कोठे खड़क सिंह'' उपन्यास पर साहित्य अकादमी, दिल्ली का पुरस्कार वर्ष 1987 में प्रदान हुआ था। यह उपन्यास हिंदी में ''एक गाँव की कहानी'' शीर्षक से प्रकाशित हुआ। 28 अगस्त 1932 में धौला,जिला-संगरूर(पंजाब) में जन्मे राम सरूप अणखी जी का निधन गत 14 फरवरी 2010 को उनके निवास बरनाला में हुआ। (स्व.)शरन मक्कड़ (मार्च, 1939- 10 नवम्बर, 2009) पंजाबी की बहुचर्चित लेखिका रही हैं। इन्होंने अनेक कहानियों और लघुकथाओं की रचना की। पंजाबी लघुकथा में इनके महत्वपूर्ण योगदान को भुला सकना असंभव है। शरन मक्कड़ जी ने अपनी मौलिक रचनात्मकता और सम्पादन कार्य के जरिये पंजाबी लघुकथा के विकास में बहुत बड़ा और उल्लेखनीय काम किया। उन्होंने अनवंत कौर के साथ मिलकर पंजाबी लघुकथा की एक बहुत ही महत्वपूर्ण पुस्तक ''अब जूझन के दाव'' सन् 1975 में सम्पादित की थी। यह वह दौर था जब पंजाबी लघुकथा में हमें उंगलियों पर गिने जाने वाले मौलिक और सम्पादित संग्रह दिखाई देते थे। लघुकथाओं के अलावा शरन जी ने पंजाबी में अनेक कहानियाँ लिखीं। 'न दिन, न रात', 'दूसरा हादसा', 'टहनी से टूटा हुआ मनुष्य', 'धुआं और धूल', 'कच्ची ईंटों का पुल' उनके प्रमुख कहानी संग्रह हैं। 'खुंडी धार' शीर्षक से उनका चर्चित लघुकथा- संग्रह है। इसके अतिरिक्त चार कविता संग्रह उन्होंने पंजाबी साहित्य की झोली में डाले।
भले ही उक्त लेखक अब हमारे बीच नहीं रहे हैं, पर लेखक कभी मरा नहीं करता। वह अपनी रचनाओं के जरिये हमारे बीच जिंदा रहता है और ये भी जिंदा रहेंगे हम सब के बीच, अपने लिखे हुए साहित्य के कारण्… ''कथा पंजाब'' इन दोनों लेखकों को भावभीनी श्रद्धाजंलि देता है।
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इस अंक में आप पढेंगे -
“रेखाचित्र/संस्मरण” स्तम्भ के अन्तर्गत राम सरूप अणखी पर पंजाबी कथाकार गुरमेल मडाहड़ द्वारा लिखा रेखाचित्र और ''पंजाबी लघुकथा : आज तक'' के अन्तर्गत शरन मक्कड़ जी की पाँच चुनिंदा लघुकथाओं का हिंदी अनुवाद...
सुभाष नीरव
संपादक - कथा पंजाब
संपादक - कथा पंजाब
3 टिप्पणियाँ:
पंजाबी साहित्य के लिए तुम जो कार्य कर रहे हो वह न केवल उल्लेखनीय है बल्कि अभूतपूर्व भी है. अभूतपूर्व इसलिए क्योंकि तुमने पीढियॊं हिन्दी पाठकों के सामने प्रस्तुत करने का स्तुत्य कार्य किया. अब तक अनुवादक पंजाबी के स्थापित कथाकारों की रचनाओं को ही हाथ लगाते थे जबकि तुमने पंजाबी के पुराने से लेकर आज के युवा रचनाकारों के अनुवाद करके हिन्दी को ही समृद्ध नहीं किया बल्कि पंजाबी लेखकों को प्रोत्साहित भी किया.
रूपसिंह चन्देल
रूप सिंह जी ने सही कहा ..... आपने अनुवाद के क्षेत्र में अभूतपूर्व काम किया है ....और इसके लिए आप प्रशंसा और सम्मान के हकदार हैं ......!!
प्रिय सुभाष जी ,
पंजाबी कथा साहित्य की बेहतरीन चीज़ों को हिन्दीभाषी पाठकों को उपलब्ध करवाने के लिए आपकी जितनी सराहना की जाए कम है .
सुधा अरोड़ा
sudhaarora@gmail.com
वसुंधरा
602 , गेटवे प्लाज़ा ,
हीरानंदानी गार्डेन्स
पवई . मुंबई - 400 076
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