पंजाबी उपन्यास
>> मंगलवार, 28 नवंबर 2017
यू.के. निवासी हरजीत अटवाल
पंजाबी के सुप्रसिद्ध कथाकार और उपन्यासकार हैं। इनके लेखन में एक
तेजी और निरंतरता सदैव देखने
को मिलती रही है। लेकिन
यह
तेजी और निरंतरता इनकी कृतियों को कहीं भी हल्का नहीं होने देतीं, वे पाठकों के सम्मुख अपनी पूरी रचनात्मकता और परिपक्वता के साथ प्रस्तुत
होती हैं। छह कहानी संग्रह, एक सफ़रनामा, एक स्व-कथन की पुस्तकों के अलावा लगभग ग्यारह उपन्यास - ‘वन-वे’, ‘रेत’, ‘सवारी’,
‘साउथाल’, ‘ब्रिटिश बोर्न देसी’, ‘अकाल सहाय’, ‘गीत’, ‘मुंदरी
डॉटकाम’, ‘मोर उडारी’, ‘आपणा’ और ‘काले रंग गुलाबां दे’ पंजाबी
में छप चुके हैं। ‘अकाल-सहाय’ और ‘आपणा’ उपन्यास इनके ऐतिहासिक उपन्यास हैं। तीन उपन्यास ‘रेत’, ‘साउथाल’
और ‘सवारी’(थेम्स किनारे
शीर्षक से) और ‘दस दरवाज़े’ नामक पुस्तक
हिन्दी में मेरे अनुवाद में प्रकाशित हो चुकी हैं।
‘अकाल सहाय’ उपन्यास जहाँ महाराजा दलीप सिंह के लाहौर
छोड़ने पर खत्म होता है, वहीं ‘आपणा’
उपन्यास महाराजा दलीप सिंह के लंदन पहुँचने से शुरू होता है।
महाराजा दलीप सिंह का अंग्रेजों ने धोखे से धर्म परिवर्तन किया था और उसे ग्रंथ
साहिब की जगह ‘बाईबल’ की तरफ जानबूझकर
झुकाया गया और भ्रमों से भरपूर एक ज़िन्दगी जीने को दी। उसे ‘महाराजा’
का खिताब अवश्य दिया गया, पर असल में वह ‘महाराजा’ था ही नहीं। हरजीत अटवाल ने महाराजा दलीप
सिंह के असमंजसता और दुविधाभरे द्वंदमयी जीवन को बेहद मार्मिक ढंग से रोचक कथा
शैली का उपयोग करते हुए अपने इस उपन्यास में लिपिबद्ध किया है। इस उपन्यास को
लिखने के लिए लेखक ने इतिहास का बहुत गहरा अध्ययन किया है जो उपन्यास पढ़कर साबित
हो जाता है। इस ‘आपणा’ उपन्यास का
हिन्दी अनुवाद ‘महाराजा दलीप सिंह’ शीर्षक
के अधीन किया जा रहा है जो धारावाहिक रूप में आपसे यहाँ साझा किया जाता रहेगा।
पिछली पोस्ट पर इस उपन्यास के पहले अध्याय ‘परायी धरती’ का पहला भाग दिया गया था,
अब प्रस्तुत है इसी पहले अध्याय का दूसरा भाग…
-सुभाष नीरव
महाराजा दलीप सिंह
हरजीत अटवाल
अनुवाद
सुभाष नीरव
1
परायी धरती
(दूसरा भाग)
इंग्लैंड में आने के लिए उसका मन बहुत समय से उतावला हुआ पड़ा था। उन दिनों में ही उसने इंग्लैंड के सपने देखने शुरू कर दिए थे, जब लाहौर के महलों में एडवर्ड उसको इंग्लैंड की धरती के बारे में तरह-तरह की बातें सुनाया करता था। उसका मन महारानी विक्टोरिया को देखने के लिए बेचैन होने लगता। अब वह अपने सपनों की धरती पर पहुँच चुका था। शीघ्र ही, विक्टोरिया से भी मिलेगा और अन्य जगहों को भी देखेगा। दरिया थेम्स भी जो दिन में दो बार उतरता-चढ़ता है, उसे देखना उसके लिए हैरानकुन होने वाली बात थी। वह बिस्तर पर से उठकर कमरे में टहलने लगा। खिड़की का पर्दा थोड़ा-सा हटाया तो रोशनी का एक रेला अंदर आ घुसा। उसने बाहर झांका। बड़ी बड़ी इमारतें तनी खड़ी थीं। इमारतों के एक तरफ एक बड़ा खुला मैदान था। मैदान में कुछ घोड़े चरते दिखाई दे रहे थे। वह घोड़ों की तरफ ध्यान से देखने लगा। फिर कुछ घुड़सवार एक तरफ से आए और आगे निकल गए। उसका मन और अधिक ललचा उठा। कितने दिन हो गए थे उसको घुड़सवारी किए। दो महीने से अधिक का समय हो गया था फतहगढ़ से चले हुए को। वह पर्दा वापस खींचकर दुबारा बिस्तर पर आ बैठा। उसका मन अभी और सोने को कर रहा था। उसको लाली के हिनहिनाने की आवाज़ सुनाई देने लगी। लाली उसी घोड़े लैली की नस्ल में से थो जिसको हासिल करने के लिए उसके पिता महाराजा रणजीत सिंह को बड़ी लड़ाई लड़नी पड़ी थी। सैकड़ों लोग एक घोड़े को छीनने के लिए मौत के घाट उतारे गए थे, कुछ उसके अपने और कुछ शत्रु के। लाली एक बार फिर हिनहिनाया।
‘लाली कुछ दिनों से उतावलापन दिखा रहा है। महाराजा खुद एक नए आए घोड़े पर सवारी करने लगा है इसलिए लाली की ओर ध्यान भी नहीं दिया जा सका। लाली ने घोड़ा-साधक के नाक में दम किया हुआ है। नौ साल का महाराजा अपने चालीस दोस्तों के साथ गतका(लकड़ी की तलवार से तलवारबाज़ी) खेल रहा है। उसकी नज़र लाली पर पड़ती है। वह लाली की बेचैनी को समझ रहा है। वह गतका खेलना बीच में छोड़ देता है। लाली की रास पकड़कर उसका मुँह नीचे खींचकर हाथ फेरता है। थोड़ी ऊँची जगह पर ले जाकर उछलकर लाली की पीठ पर चढ़ बैठता है। लाली उसके आदेश का पालन करते हुए रावी नदी की ओर भागने लगता है।’
उसके कमरे का दरवाज़ा किसी ने आकर खटखटाया है। नीलकंठ जो दूसरे कमरे में आराम कर रहा था, ने उठकर दरवाज़ा खोला। वह जानता था कि साधारण व्यक्ति को महाराजा से मिलने की मनाही है। मि. लोगन समझा गया था कि पत्रकार किस्म के लोग उस तक पहुँचने का प्रयास करेंगे जो कि अगले दिन बात का बतंगड़ बनाकर अखबारों में समाचार लगा देंगे। यद्यपि यह बात होटल के मैनेजर को भी बता रखी थी कि कोई भी पत्रकार महाराजा के साथ बात न करे, पर कई पत्रकार होटल के छोटे कर्मचारियों को रिश्वत देकर अपना काम निकालने की ताक में रहते हैं। हाथ में पेन और कापी देखकर नीलकंठ समझ गया और वह आगंतुक को दरवाज़े से ही लौटाने लगा। उस व्यक्ति ने कुछ देर बहस की, परंतु चला गया। महाराजा ने अपने सिरहाने पड़ी बाइबल उठा ली। मिसेज लोगन ने बता रखा था कि जब भी मन बेचैन हो तो बाइबल का सहारा लेना चाहिए। वह पानी के जहाज में भी बाइबल पढ़ता आया था। जहाँ तक वह पढ़ चुका था वहाँ उसने निशानी के तौर पर एक कागज़ रखा हुआ था। वह रोज़ाना दो बार बाइबल पढ़ता ही था। इसकी बहुत सारी कहानियाँ उसको याद हो चुकी थीं और किसी के साथ बात करते समय उन कहानियों का उदाहरण भी देने लगता। लॉर्ड डलहौजी ने भी हिन्दुस्तान से चलते समय एक बाइबल उसको उपहार में भेंट की थी। लेकिन वह अभी कोरी पड़ी थी अर्थात उसने अभी उसको खोलकर भी नहीं देखा था। बाइबल तो सभी एक जैसी ही थीं। बस, अंतर यही था कि कौन सी किसने प्रेमपूर्वक भेंट की है और कौन किधर से अपनी श्रद्धा के साथ खड़ा था। अब तक महाराजा की बाइबल में अद्वितीय श्रद्धा हो चुकी थी।
एकबार फिर दरवाज़े पर दस्तक हुई। नीलकंठ उठकर गया। इस बार मिसेज लोगन थी। उसने महाराजा को बड़ी सी मुस्कराहट दी और पूछने लगी -
“युअर हाईनेस, नींद ठीक आई?“
“हाँ मैम, कुछ कुछ।“
“पर अभी भी थके हुए लग रहे हो।“
“वैसे ही।“
“कुछ कहना चाहते हो?“
तब तक मिसेज लोगन महाराजा के चेहरे को देखकर समझ गई थी कि उसके मन में कोई बात है। महाराजा भी उसके साथ अपने दिल की कई बातें निःसंकोच कर लिया करता। दरअसल, यह मिसेज लोगन ही थी जिसने बीबी जी (माँ) की याद को दूर धकेल रखा था। उसको उदास नहीं होने दिया था। बीबी जी की याद तो उसको अभी भी बहुत आती, पर इतनी तकलीफ़देह न होती। जहाँ मि. लोगन उसको इसे होनी समझने में सहायता करता, वहीं मिसेज लोगन ममता की मूरत बनकर उसके सामने पेश होती। जब मि. लोगन को महाराजा के सुपरिंटेंडेंट बनने का उत्तरदायित्व सौंपा गया था तो उसकी दूरअंदेशी ने उसको बता दिया था कि छोटे-से महाराजा की सही देखरेख के लिए उसकी पत्नी बहुत सहायक सिद्ध हो सकती है। इसीलिए उसने अपनी पत्नी को पत्र लिखकर हिन्दुस्तान बुला लिया था।
कुछ कहते हुए महाराजा थोड़ा-सा झिझका और फिर खिड़की की ओर इशारा करते हुए बोला -
“मैम, मैं बाहर देख रहा था कि घोड़े नज़र आए। बस, ज़रा घुड़सवारी को मन हो आया।“
मिसेज लोगन ने खिड़की के करीब जाकर बाहर की ओर देखा और कहने लगी, “यह हाइड पार्क है... कुछ दिन रुको, घुड़सवारी का कोई न कोई इंतज़ाम हो जाएगा।“
फिर उसने महाराजा के हाथ में बाइबल देखी और खुश होकर ने पूछा-
“किस अध्याय पर हो?“
कुछ कहे बिना महाराजा ने खुली हुई बाइबल मिसेज लोगन के सामने कर दी। मिसेज लोगन ने ध्यान से देखा और बोली -
“बहुत बढ़िया ! नौजवान ! याद रखना, इस धरती पर, इस दुनिया में कुछ नहीं, अगर कुछ है तो ईश्वर के बनाये स्वर्ग में है। इस धरती का राज भी कोई मायने नहीं रखता, यह सब अस्थायी है, स्वर्ग का राज स्थायी है जो कि जीसस के बताये रास्ते पर चलने से ही प्राप्त हो सकता है। धरती के राज से तो लाख दर्जे बढ़िया राज है स्वर्ग का।“
“मैम, आप बिल्कल सही कह रही हैं। जीसस का बताया राह ही असली राह है। इसी पर चलना ही ज़िन्दगी है।“
“बिल्कुल ठीक युअर हाईनेस। मुझे पूरी आशा है कि एक दिन आप अपने आपको मिसाली ईसाई सिद्ध कर सकोगे।“
“आमीन !“
महाराजा ने दिल पर हाथ रखते हुए कहा। मिसेज लोगन खुश होकर पूछने लगी -
“बताओ, कौन सी पोशाक पहननी पसंद करोगे?“
“इस पार्टी में हर मजैस्टी महारानी विक्टोरिया भी होंगी?“
“नहीं, वह नहीं होंगी। आप उन्हें अभी नहीं मिल सकते। आज की महफ़िल में तो इस शहर के कुछ लॉर्डज़ या खास व्यक्ति ही होंगे।“ कहते हुए मिसेज लोगन ने महाराजा के चेहरे की ओर देखा। उसे पता था कि महाराजा महारानी विक्टोरिया से मिलने के लिए कितना उतावला था। यदि उसके हाथ में होता तो वह उसको अभी ले जाती। वह खुद भी तो महारानी को देखना चाहती थी।
मिसेज लोगन के शब्दों ने महाराजा का उत्साह ठंडा कर दिया। महाराजा जब भी महारानी के बारे में सोचता, उसके मन में किसी देवी की तस्वीर बनने लगती। हर अंग्रेज सिपाही उसके लिए वफ़ादार था। हर कोई उसकी प्रशंसा में गीत गा रहा होता। हर कोई सच्चा बनने के लिए महारानी विक्टोरिया की सौगंध खाता।
मिसेज लोगन ने नीलकंठ को साथ लेकर महाराजा के लिए पोशाक तैयार करके एक तरफ रख दी और बोली, “युअर हाईनेस, अपना शुरू किया अध्याय खत्म करके जल्दी तैयार हो जाएँ। जॉह्न ठीक नौ बजे क आपके पास पहुँच जाएँगे। जब से घड़ियाँ ईजाद हुई हैं, वक्त की कद्र बढ़ गई है। पार्टी में भी लोग समय से हाज़िर होंगे।“
फिर मिसेज लोगन नीलकंठ को कुछ हिदायतें देकर चली गई और महाराजा पुनः बाइबल में डूबने की कोशिश करने लगा। उसका मन फतहगढ़ जा पहुँचा। वह सोच रहा था कि यदि राजकुमार शिवदेव सिंह भी उसके साथ आ गया होता तो कितना अच्छा होता। अचानक उसको अपनी बीबी जी का चेहरा दिखाई दिया। उसने अपना ध्यान बाइबल की ओर मोड़ लिया। फिर उसको कहीं दूर से मद्धम सी आवाज़ सुनाई देने लगी -
“ऊड़ा...ऐड़ा...ईड़ी...(पंजाबी वर्णमाला के प्रारंभिक अक्षर) देखो महाराजा जी, यह गुरमुखी है, हमारे गुरुओं द्वारा बनाई लिपि जिसमें हमारा ग्रंथ साहिब भी है, यही हमारा जीवन है और यही जीने का तरीका। गुरू ग्रंथ पढ़ना हर सिक्ख का फर्ज़ है और कोई भी गुरसिक्ख इससे बेमुख नहीं हो सकता।“... ज्ञानी जी उसके सामने बैठे हैं। उनकी सफ़ेद दाढ़ी और गोल पगड़ी, दोनों बहुत अच्छी लगती हैं। ज्ञानी जी महाराजा को रोज़ पंजाबी पढ़ाने आया करते हैं। महाराजा पढ़ाई में होशियार है और सहजता से ही गुरमुखी सीख लेता है, सारे अक्षर जुबानी भी कंठस्थ कर लेता है और लिखने भी लगता है और फिर शब्दों का जोड़ भी करने लगता है। शब्द-जोड़ सरल ही है, वह लिखता है - पं जा ब। फिर लिखता है - द ली प सिं ह। तीसरा शब्द सीखता है - बी बी जी।...
महाराजा एकदम घबरा गया। उसने एकाएक बाइबल बंद कर दी और शून्य में देखने लगा। ऐसा कभी-कभार उसके साथ हो जाया करता है। यद्यपि ईसाई बने उसको काफ़ी अरसा हो चुका था और ईसाई धर्म पर ही उसकी आस्था पूरी तरह बंध चुकी थी, पर फिर भी कभी कभी ऐसा कुछ दिखने लगता था। वह उठकर फिर से खिड़की के समीप जा खड़ा हुआ। अब घोड़े हाइड पार्क में से जा चुके थे। बाहर रोशनी भी कुछ मद्धम पड़ने लगी थी। वह तैयार होने लगा। नीलकंठ आदत के अनुसार अधिक बात नहीं किया करता था। विशेषकर जब महाराजा चुप-सा होता तो नीलकंठ भी ज़रूरत के बिना न बोलता।
वस्त्र बदलते हुए उसको एक बार फिर शिवदेव सिंह की याद हो आई। शिवदेव सिंह उसके बड़े भाई महाराजा शेर सिंह का पुत्र। रिश्ते में तो भतीजा लगता था, पर आयु बहुत कम होने के कारण दोनों दोस्त थे। अंग्रेज दोनों को एकसाथ ही पंजाब से लाए थे। शिवदेव सिंह भी उसके साथ ही इंग्लैंड आना चाहता था, पर उसकी माँ महारानी दुखनो ने उसको ऐसा नहीं करने दिया। रास्ते में भी वह शिवदेव सिंह को कई बार याद कर चुका था। शिवदेव सिंह की याद आते ही उसके मन को कुछ होने लगा। उसने बाइबल का वही सफ़ा दुबारा खोल लिया जहाँ उसने छोड़ा था। बाइबल को पढ़ते हुए उसके मन को शांति मिलने लगी।
मिसेज लोगन का बताया यह ढंग उसके बहुत काम आता। वह इतने बढ़िया तरीके के साथ बाइबल की व्याख्या करती कि महाराजा सारी बात को पूरी तरह समझ जाता। मिस्टर और मिसेज लोग के साथ उसको हमेशा ही मोह रहा था, नहीं तो उसको हर फिरंगी धोखेबाज ही दिखाई देता। डलहौजी ने उसका हर जगह अपमान करने की कोशिश की थी। वह उसको महाराजा कहने की बजाय ‘ओए’ कहकर बुलाता जैसे वह कोई साधारण-सा बच्चा हो। पर जब उसने ईसाई धर्म अपना लिया तो डलहौजी का व्यवहार अवश्य कुछ बदला था। फिर तो इंग्लैंड को चलते समय उसने महाराजा को एक बाइबल उपहार के रूप में भी दी थी। बाइबल के अंदर ही डलहौजी का लिखा पत्र अभी भी पड़ा हुआ था, लिखा था -
“प्रिय महाराजा, आपके इंग्लैंड के लिए रवाना होने से पहले मैं यह बाइबल आपका तोहफे के तौर पर देना चाहता हूँ। मैंने हमेशा आपको बेटे की तरह समझा है। प्रिय महाराजा, मेरे पर विश्वास करना, मैंने हमेशा आपको पसंद किया है।“
महाराजा को डलहौजी के इस पत्र पर अभी भी विश्वास नहीं था। उसको डलहौजी की अपेक्षा लॉर्ड होर्डिंग पर अधिक भरोसा था। यह होर्डिंग ही था जो उसकी बांह पर कोहिनूर बांधकर दिया करता था, बिल्कुल उसी तरह जैसे शेरे पंजाब बांधा करते होंगे। बीबी जी उसको बताया करते थे कि कोहिनूर उनके पिता की बांह पर कितना सजता था। लॉर्ड होर्डिंग के साथ उसका अधिक वास्ता नहीं पड़ा था क्योंकि शीघ्र ही मिस्टर लोगन को उसका सरपरस्त बना दिया गया था। मिस्टर लोगन पहले सख्त हुआ करता था, पर फिर वह बहुत ही नरमी के साथ पेश आने लगा। जब उसकी पत्नी इंग्लैंड से आ गई तो महाराजा को सब अच्छा-अच्छा लगने लगा था। उनके अपने भी दो बच्चे थे - हैरी और मैरी। शुरू शुरू में मिसेज लोगन को महाराजा के साथ इतना प्रेम करते देख उसके बच्चे बहुत ईर्ष्या करने लगते, पर जब उनको पता चला कि यह तो नौकरी का एक हिस्सा है तो वे शांत हो गए। हैरी तो बाद में उसका दोस्त भी बन गया था। हैरी भी उसे इंग्लैंड के बारे में बहुत सारी बातें सुनाया करता था जो महाराजा को इंग्लैंड के प्रति आकर्षित करने में बहुत सहायक हुई थीं। मिसेज लोगन बताया करती कि उनका एक घर लंदन में है और एक स्कॉटलैंड में। एक बार महाराना ने सवाल किया था -
“मैम, इंग्लैंड जाकर मैं आपके घर में रह सकता हूँ?“
“युअर हाईनेस, मेरा घर मेरे परिवार के लिए है, पर आपका अपना घर होगा। आप महाराजाओं की तरह रहोगे, आप महाराजा जो हो।“
...दरवाजे़ पर हुई दस्तक महाराजा को अतीत में से बाहर निकालकर वर्तमान में ले आई और वह उठ खड़ा हुआ। भोजन पर ले जाने के लिए मिस्टर और मिसेज लोगन आए थे। असल में इस पार्टी का प्रबंध जॉह्न लोगन ने ही अपने खास मित्र के माध्यम से किया था। उसका उद्देश्य था कि महाराजा के लंदन पहुँचते ही समाज की ऊपर वाली जमात के साथ उसका परिचय करवा दिया जाए। उसका बड़ा मकसद तो अपने किए काम के दर्शन इन बड़े लोगों को करवाना था। महाराजा उनके साथ चलते हुए एक हॉल में आ गया जहाँ करीब बीसेक लोग एक गोल मेज के इर्दगिर्द बैठे हुए थे। वे सभी उठकर खड़े हो गए। मिस्टर लोगन ने महाराजा का सबसे परिचय करवाया। महाराजा खुश होकर सबके साथ हाथ मिलाता जा रहा था, पर उसे नाम याद नहीं हो पा रहे थे। इतना अवश्य था कि हर एक नाम के साथ ‘लॉर्ड’ या ‘सर’ लग रहा था। सबसे मिलकर महाराजा अपनी कुर्सी के सामने आ गया। सब एकसाथ अपनी अपनी कुर्सियों पर बैठ गए। बैरे वाइन सर्व करने लगे। सबने अपने अपने वाइन के गिलास उठाये और एक साथ बोले, “लोंग लिव क्वीन!“
फिर किसी अन्य लॉर्ड ने महाराजा का इस समाज में आने के लिए स्वागत किया। लॉर्ड मौलेय अपनी कुर्सी पर से उठा और अपना पैग ऊपर उठाते और महाराजा की ओर देखते हुए व्यंग्यभरी आवाज़ में बोला-
“हमारी महान महारानी हर मैजिस्टी विक्टोरिया की नई प्राप्तियों के नाम!“
सब एक आवाज़ में बोले, “आमीन!“ महाराजा ने भी उनके साथ ही ‘आमीन’ कहा।
महाराजा वाइन का स्वाद पहले भी देख चुका था, पर उसे अच्छी नहीं लगती थी, इसलिए एक घूंट भरकर गिलास एक तरफ कर दिया। फिर मिस्टर लोगन ने कुछ देर के लिए महाराजा के बारे में भाषण दिया जिसमें उसने महाराजा की प्रशंसा के अच्छे-खासे पुल बाँधे। इसी प्रकार, बारी बारी से सभी कुछेक मिनट के लिए बोले। सबने ही लोगन युगल की तारीफ की और फिर खुली बातें होने लगीं। अचानक किसी ने पूछा, “महाराजा, कैसा लग रहा है इंग्लैंड?“
“माय डियर लॉर्ड, मैं तो आज ही आया हूँ और एक कमरे में बंद हूँ।“
उसकी बात पर सभी हँसने लगे और कई महाराजा की
हाजिर-जवाबी की तारीफ़ करने लगे। फिर कुछ बातें मौसम को लेकर होने लगीं। महाराजा हर बात का जवाब आसानी से देता जा रहा था। लगता ही नहीं था कि वह पंद्रह साल का बच्चा है। लॉर्ड मौलेय को महाराजा बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था, पर उसके साथ बैठा लॉर्ड ऑस्टिन महाराजा को बहुत हसरत भरी नज़र से देख रहा था। लॉर्ड बरनबी अधिक स्पष्ट नहीं था, अभी तक महाराजा के बारे में कोई विचार नहीं बना सका था। महाराजा हरेक के साथ आँखों के माध्यम से संपर्क रखकर सामने वाले के मन में अपने वजूद को अंकित करने की कोशिश कर रहा था। जब उसने लॉर्ड बरनबी के साथ आँखें मिलाईं तो लॉर्ड बरनबी ने खुश होते हुए सवाल किया-
“महाराजा, आप अंग्रेजी बहुत अच्छी बोल रहे हो, मैं भी इंडिया में रहा हूँ। पढ़े-लिखे लोग भी ऐसी अंग्रेजी नहीं बोल सकते, क्या कारण है?“
“माय डियर लॉर्ड, यह तो सर लोगन और मैम की मेहरबानी है।“
मिसेज लोगन बाग बाग हो गई। उसके साथ बैठी लेडी बरनबी महाराजा के बारे में सोचे जा रही थी कि इतनी सी आयु में बच्चे तो माँ के बिना रह नहीं सकते, यह कैसे रहता होगा। इसकी माँ इसको छोड़कर कैसे गायब हो गई होगी। उसके अंदर ममता उमड़ने लगी। फिर सारी महफ़िल इंग्लैंड की सियासत की बातें करने लगी। यॉर्कशाइर में बिछ रही रेलवे लाइन के बारे में बातें होने लगीं। महाराजा को इसका अधिक इल्म नहीं था, वह अपने आप को मिसेज लोगन के साथ बातें करने में व्यस्त कर लेता। लेडी बरनबी भी उसको छोटे-छोटे सवाल पूछे जा रही थी। वे दो घंटे वहाँ बैठे रहे। भोजन किया और उठकर चल गए। सब एक-दूसरे को अलविदा कह रहे थे। लॉर्ड मौलेय ने किसी को हौले-से कहा -
“मुझे तो यह साँप लगता है।“
मिसेज लोगन ने सुन लिया और क्रोध में भरकर वह लोर्ड मौलेय की ओर बढ़ गई।
(जारी...)